Book Title: Jinagam Ke Anmol Ratna
Author(s): Rajkumar Jain, Mukesh Shastri
Publisher: Kundkund Sahtiya Prakashan Samiti
View full book text
________________
जिनागम के अनमोल रत]
[225 एक एक सत्तामैं अनंत परजाइ फिरै ,
एकमैं अनेक इहि भांति परवान है। यहै स्यादवाद यहै संतनिकी मरजाद , यहै सुख पोख यह मोखको निदान है ।। 22।।
पुनः (सवैया इकतीसा) साधी दधि मंथमैं अराधी रस पंथनिमैं,
जहां तहां ग्रंथनिमैं सत्ताहीको सोर है। ग्यान भान सत्तामैं सुधा निधान सत्ताहीमैं ,
सत्ताकी दुरनि सांझ सत्ता मुख भोर है।। सत्ताकौ सरूप मोख सत्ता भूल यहै दोष,
सत्ताके उलंघे धूमधाम चहूं वोर है। सत्ता की समाधिमैं बिराजि रहै सोई साहू, सत्ता निकसि और गहै सोई चोर ।।23।।
(सम्यग्दृष्टि जीवोंका सद्विचार) जिन्हके मिथ्यामति नहीं, ग्यानकला घट मांहि। परचै आतमरामसौं, ते अपराधी नांहि ।।३०।।
पुनः (सवैया इकतीसा) जिन्हकी चिंहुटि चिमटासी गुन चूनिबेकौं,
कुकथाके सुनिबेकौं दोऊ कान मढ़े हैं। जिन्हको सरल चित्त कोमल वचन बोलै, - सोमद्दष्टि लिय डोलैं मोमकैसे गढ़े हैं।। जिन्हकी सकति जगी अलख अराधिबेकौं,

Page Navigation
1 ... 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234