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[जिनागम के अनमोल रत्न
जन्म मरण से सहित है। तो भी जिसकी बुद्धि जिसका विवेक नष्ट हुआ है ऐसा यह जीव निरन्तर इस दुखमय संसार में ही अनुरक्त होता है, संसार सुख में ही आशक्त होता है, यह बड़ा आश्चर्य है । 110-19-20।।
जिनको भाग्यवश धन मिलता है वे आनंद से हंसते है, देववश जिनका धन चला जाता है वे शोकाकुल होकर रोते हैं। जिनको कुछ बुद्धि-क्षयोपशम प्राप्त है वे शास्त्र पढ़ते हैं। जिनको बुद्धि-क्षयोपशम नहीं वे निरन्तर प्रमाद में - नींद लेने में जीवन को खोते। जो मुनिश्रेष्ठ संसार से विरक्त होते हैं वे तपोवन में जाकर तप करते हैं, आत्मसाधना करते हैं। जो विषयों के अनुरागी हैं वे पंचेन्द्रिय विषयों में ही रमते हैं। इस प्रकार यह जीव इस संसाररूपी रंगभूमि पर नट के समान विविध क्रिया करता रहता है । 110-23 11
पुरुष को जरारूपी स्त्री में आसक्त देखकर रोष से द्युति - कांति, गति, धृति, प्रज्ञा, बुद्धि, लक्ष्मी - वैभव इत्यादि सब स्त्रियां उस वृद्ध पुरुष को छोड़कर चली जाती हैं, परन्तु तृष्णा रूपी स्त्री नहीं जाती। ठीक है - अपने प्रिय पति को अपराधी देखकर भी कौन पतिव्रता स्त्री उसको छोड़ सकती है ।। 11-23 ।।
जिन माता-पिता आदि से हमारा जन्म हुआ वे सब मरण को प्राप्त हो गये। जिन मित्र बन्धु-बान्धवों के साथ खेल - कूदकर हम बड़े हुए उन सबने भी आंखें फेर लीं- वे सब भी काल के गाल में समा गये। अब इस क्रमपरिपाटी में हमारे मरण का समय आया है - ऐसा जानते - देखते हुए भी मूढ़ प्राणी विषयों से विरक्त नहीं होता ।।13-19।।
यह अज्ञप्राणी अमुक मर गया, अमुक मरणोन्मुख है और अमुक भी निश्चय ही मरेगा, इस प्रकार नित्य ही दूसरों की गणना तो किया करता है, किन्तु शरीर, धन, स्त्री आदि वैभव में महामोह से ग्रस्त हुआ मूर्ख मनुष्य अपने पास आई मृत्यु को भी नहीं देखता ।।13-2011
धन-धान्य और खजाना ये सब भाग्य के अनुकूल होने पर ही जीव को सुखदायक होते हैं । यह जानकर ज्ञानी को खेद नहीं करना चाहिये । 114-24।।