Book Title: Jina Khoja Tin Paiya Author(s): Ratanchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 8
________________ संस्कार से परिणामों में निर्दयता व क्रूरता है, लड़ाने-भिड़ाने की प्रवृत्ति है तो वह कोई भी काम क्यों न करे, उस काम को बुराई ही मिलेगी। जिन खोजा तिन पाइयाँ परमात्मा की बात समझ सकता है, साततत्त्वों की बात समझ सकता है, सच्चे देव-शास्त्र-गुरु की पहचान कर सकता है। अतः प्रत्येक जैन श्रावक को सप्त व्यसनों का त्यागी और अष्टमूलगुणों का धारी तो होना चाहिए। सामान्यतः मद्य-मांस-मधु और बड़, पीपल, ऊमर, कठूमर और पाकर इन पाँचों उदुम्बर फलों का त्याग ही अष्ट मूलगुण है। मूलगुण अर्थात् मुख्य गुण, जिनके धारण किये बिना श्रावकपना ही संभव नहीं। शिक्षण के क्षेत्र में सर्वाधिक बुद्धिमान और प्रतिभावान व्यक्ति आना चाहिये; क्योंकि अध्यापक न केवल अक्षर ज्ञान देने वाला एक सामान्य व्यक्ति होता है; बल्कि वह बालकों के चतुर्मुखी व्यक्तित्व का विकास करने वाला एवं उनके चरित्र का निर्माता भी होता है। आज के होनहार बालक ही तो कल के भारत के भाग्य विधाता राष्ट्र के नायक और देश के भावी कर्णधार बनने वाले हैं। ___ यदि कोई इंजीनियर भूल करेगा तो अचेतन मकान, सड़क, पुल, बाँध ही बिगड़ेगा, यदि कोई डॉक्टर भूल करेगा तो एकाध व्यक्ति का सुख चैन ही जायेगा, यदि एक न्यायाधीश भूल करेगा तो एक-दो व्यक्तियों के प्रति अन्याय ही होगा - ये कोई बड़ी हानियाँ नहीं है। हाँ; यदि अध्यापक भूल करेगा तो पूरे राष्ट्र का ढाँचा ही चरमरा जायेगा; क्योंकि अध्यापक भारत के भावी भाग्य-विधाताओं के चरित्र का निर्माता है, कोमलमति बालकों में नैतिकता के बीज बोनेवाला और अहिंसक आचरण तथा सदाचार के संस्कार देनेवाला उनका गुरु है। अतः उसे न केवल प्रतिभाशाली, बल्कि सदाचारी और नैतिक भी होना चाहिए। (१४) यद्यपि काम कोई भला-बुरा नहीं होता, भलाई-बुराई होती है व्यक्ति के विचारों में। यदि व्यक्ति के विचार नैतिक हैं तो हर काम नेक है, भला है और यदि विचारों में अनैतिकता है, लोभ-लालच है, स्वार्थ भावना है, ढोंगी और पाखंडियों के हाथ में पड़कर पूजा-पाठ, धर्म-ध्यान और प्रवचन जैसे पवित्र काम भी ढोंग और पाखण्ड के नाम से बदनाम हो रहे हैं। इसमें काम का क्या दोष है? केवल गलत हाथों में पड़ने से ही ये काम बदनाम हुए हैं न? यही स्थिति वकालत की है। अन्यथा इस व्यवसाय में तो हम उल्टे सच बोलने के लिए बाध्य हैं; क्योंकि जिन्हें पुराण, कुरान और बाइबिल की साक्षी पूर्वक सच बोलने की प्रतिज्ञा कराई जाती है, वह और उसका सलाहकार असत्य कैसे बोल सकता है या बुलवा सकता है? वकील का काम तो केवल इतना ही है न कि वह न्यायकर्ता और न न्याय माँगने वाले के बीच दुभाषिये का काम करे और सत्यपक्ष को उजागर करने में न्यायाधीश की मदद करे। वकालत का काम एक निहायत पवित्र पेशा है, और यह काला कोट काली करतूतों को छिपाने का साधन नहीं, बल्कि सूरदास की उस काली कामरी का प्रतीक है, जिस पर कृष्ण भक्ति के रंग के सिवाय दूसरा रंग नहीं चढ़ता। अतः इस काले कोट पर भी अन्याय, अनीति, बेईमानी और धन के लालच का कोई रंग नहीं चढ़ चढ़ना चाहिए। (१६) वीतरागाय नमः, महावीराय नमः की तरह ही तो नमः शब्द के आगे 'ते' लगाकर नमस्ते बना है। अर्थात् आपको नमस्कार हो। ते नमः में स्थान परिवर्तन करने से नमस्ते बनता है, जिसका अर्थ पूज्य पुरुषों को नमन करना होता है। (१७) मित्र कभी मेहमान नहीं होता। मित्र तो सदा मित्र ही रहता है। मित्र केPage Navigation
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