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जिन खोजा तिन पाइयाँ
( ४३ )
यद्यपि एक कार्य की निष्पत्ति में अनेक कारण मिलते हैं और उनमें व्यक्ति का अपना पुरुषार्थ ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता है; किन्तु अन्य कारणों में निमित्तकारण भी विस्मृत करने योग्य नहीं है; क्योंकि सज्जन पुरुष दूसरों के द्वारा किये गये उपकारों को भी कभी नहीं भूलते। (88)
संतान के जीवन को सुखमय बनाने के लिए पैसा ही सब कुछ नहीं होता, संतान पर व्यक्तिगत ध्यान देना भी अति आवश्यक होता है, थोड़ासा भी ध्यान हटा नहीं कि संतान पतन के किसी भी गहरे गड्ढे में गिर सकती है।
(४५)
संतान पैदा करने से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण उनका सही ढंग से लालनपालन, देख-भाल और पढ़ाने लिखाने के साथ उनके सम्पूर्ण भविष्य को उज्ज्वल बनाना होता है, आज के इस महंगाई के युग में तथा अत्यन्त व्यस्त जीवन में कोई कितना भी साधन सम्पन्न क्यों न हो, दो संतानों से अधिक का दायित्व वहन नहीं कर सकता।
( ४६ )
पुत्रों के प्रति माता-पिता का जितना दायित्व है; उससे भी कहीं बहुत अधिक दायित्व पुत्रियों के प्रति होता है; क्योंकि यदि योग्य घर - वर की कमी के कारण उनका जीवन सुखी नहीं रह सका तो उनके माता-पिता न केवल उत्तरदायी ही होते हैं, बल्कि पुत्रियों को दुःखी देखकर स्वयं भी दुःखी होते हैं और यह पीड़ा जीवनभर सहनी पड़ती है। यदि देवयोग से रूप-रंग या गुणों में हीन हुई, तब तो लाखों रुपये खर्च करने पर भी योग्य घर वर मिलना दुर्लभ हो जाता है।
( ४७ )
जो पूजा का सही स्वरूप और प्रयोजन समझकर प्रतिदिन भगवान के दर्शन-पूजन करता है, वह एक न एक दिन स्वयं भगवान बन जाता है।
(१२)
संस्कार से
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साधु नगर में गृहस्थी के बीच नहीं रहते; क्योंकि गृहस्थों का सान्निध्य, नगर का कोलाहल तथा गृहस्थों के आवास उनकी आत्मसाधना के अनुकूल नहीं होते।
यद्यपि नग्न दिगम्बर साधुओं को जिनदर्शन पूजन एवं प्रक्षाल करना अनिवार्य नहीं है; क्योंकि जो स्वयं पूज्य और दर्शन देने योग्य बन गये हैं, उन्हें अब पूजन से कोई प्रयोजन नहीं रहा; पर जहाँ जिनमन्दिर होता है, वहाँ दर्शन करने वे जाते अवश्य हैं।
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संस्कारों की तो बात ही निराली है। देखो न! चिड़ियों को ऐसे सुविधा सम्पन्न और सभी तरह के सुरक्षा साधनों से युक्त घोंसला बनाने का प्रशिक्षण कौन देता है? मधुमक्खियों को फूलों का रस एकत्रित कर मधु बनाने और सुरक्षित रहने के लिए मोमयुक्त वातानुकूलित छत्ता बनाने का प्रशिक्षण कौन देता है? चीटियों को सामूहिक रूप से संगठित होकर अन्नकण इकट्ठा करने की शिक्षा कहाँ से मिलती है ? पशुओं को जन्मते ही पानी में तैरना किसने सिखाया ? और जाने ऐसे कितने विचारणीय प्रश्न हैं जो हमारे पुनर्जन्म और पूर्व के संस्कारों को सिद्ध करते हैं।
ये सब उनके जन्म-जन्मान्तर और वंश परम्परागत संस्कारों के ही सुपरिणाम हो सकते हैं, जो उन्हें अपनी पूर्व की पीढ़ी-दर-पीढ़ी से मिलते आ रहे हैं।
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कुसंस्कारों का कुप्रभाव भी कहाँ तक हो सकता है, इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। यदि हम अपनी संतान को दुराचारी नहीं देखना चाहते हैं तो हमें अपने दुराचारों को तिलांजलि देनी होगी और अपने बच्चों को सदाचार के संस्कार देने होंगे।