Book Title: Jina Khoja Tin Paiya
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 70
________________ मान से मुक्ति की ओर से ~ यह सब तो पुण्य-पाप का खेल है। रोड़ पर पैदल रास्ता नापने वालों को करोड़पति बनकर कार में दौड़ने में यदि देर नहीं लगती तो करोड़पति से पुनः रोड़ पर आ जाने में भी देर नहीं लगती। शास्त्र इस बात के साक्षी हैं, शास्त्रों में लिखा है कि जो जीव एकक्षण पहले तक स्वर्गों के सुख भोगता है, सहस्रों देवांगनाओं सहित नन्दनवन के सैर-सपाटे करता हुआ आनन्दित होता है; वही अगले क्षण आयु पूरी होने पर एक इन्द्रिय जीव की योनि में चला जाता है। जो अभी चक्रवर्ती के भोगों के सुख भोग रहा है, वही मरकर सातवें नरक में भी जा सकता है। १३६ जिन खोजा तिन पाइयाँ अनुकूलता निश्चय ही कोई महान् पुण्य का फल है, यह अवसर अनन्त/ असंख्य प्राणियों में किसी एकाध को ही मिलता है जिसे हम प्राप्त करके प्रमाद में खो रहे हैं। यदि यह अवसर चूक गये तो पुनः यह अवसर कब मिलेगा। इसका कोई पता नहीं। कहा भी है - 'यह मानुष पर्याय सुकुल सुनिवो जिनवाणी। इह विधि गये न मिले सुमणि ज्यों उदधि समानी ।।' (११) यह एक नियम है कि ध्यान के बिना कोई भी संसारी जीव नहीं है। कोई न कोई ध्यान प्रत्येक प्राणी में पाया ही जाता है। यदि व्यक्ति का अभिप्राय, मान्यता सही नहीं है तो उसे आर्त-रौद्रध्यान ही होते हैं; क्योंकि धर्मध्यान तो मिथ्या मान्यता में होता ही नहीं है। धर्मध्यान तो सम्यक्दृष्टि जीवों के ही होता है। (१२) करणानुयोग शास्त्रानुसार जितना बीच-बीच में शुभभाव होता है उतनी राहत तो असाध्य रोगों व दुःखों के बीच में भी मिल ही जाती है, पर; उस सागर जैसे दुःख में एक बूंद जैसे सांसारिक सुख का क्या मूल्य? ऐसी स्थिति में इस जीव को सुखी होना हो तो पुण्य-पाप परिणामों की पहचान के लिए जिनवाणी का अभ्यास अवश्य करना चाहिए। पण्डित भागचन्दजी ठीक कहते हैं - 'अपने परिणामनि की संभाल में, तातें गाफिल मत हो प्राणी।' बंध-मोक्ष परिणमन ही तैं, कहत सदा ये जिनवरवाणी। (१३) यहाँ 'गाफिल' शब्द के दो अर्थ हैं एक तो सीधा-सादा यह कि परिणामों की संभाल में सावधान रहो, अपने शुभाशुभ परिणामों को पहचानों और अशुभ भावों से बचो । दूसरा अर्थ है कि शुभाशुभ परिणामों में ही गाफिल (मग्न) मत रहो, अपने परिणामी द्रव्य को पहचानों तभी परिणाम हमारे स्वभाव सन्मुख होंगे। यदि कोई थोड़ा भी समझदार हो, विवेकी हो तो वह क्षणिक अनुकूल संयोग में अपनी औकात (हैसियत) को नहीं भूलता। अपनी भूत और वर्तमान की कमजोरी और त्रिकाली स्वभाव की सामर्थ्य - दोनों को भलीभाँति जानता है। मनुष्य तीन श्रेणी के होते हैं - १. उत्तम २. मध्यम और ३. अधम । उत्तममनुष्य वह है जो दूसरों की गलती का दुष्परिणाम देखकर स्वयं सावधान हो जाय। मध्यममनुष्य वह है जो एक बार गलती का दण्ड भुगतकर पुनः गलती न करे तथा अधम वह है, जो गलती पर गलती करता रहे; गलतियों का दण्ड भुगतता रहे; फिर भी सुधरे नहीं, चेते नहीं। (४) यद्यपि कुत्ता स्वामीभक्त होता है, यह उसका अद्वितीय गुण है। कुत्ते जैसा स्वामी भक्त कोई नहीं होता है, पर उसमें तीन दुर्गुण भी होते हैं - प्रथम - कुत्ता जब तक पिटता है, तभी तक काईं-काईं करता है, पिटना बंद होते ही फिर वही गलती करता है, जिसके कारण वह अभी-अभी

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