Book Title: Jina Khoja Tin Paiya
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 44
________________ जिन खोजा तिन पाइयाँ अपनी इस मिथ्यात्व से मैली, कषाय से कलुषित तथा राग से रंजित परिणति की हमें कुछ भी खबर नहीं है। सब 'अपनी-अपनी ढपली व अपने-अपने राग अलापने में मस्त हैं, मदोन्मत्त है। किसी को भी यह परवाह नहीं है कि यदि इसी परिणति में हमारा मरण हो गया तो हम मरकर कहाँ जायेंगे? क्या गति होगी हमारी । ८४ ( ५८ ) शुभ और अशुभ दोनों ही परिणतियाँ अंध हैं और कर्मबन्ध की कारण हैं। एकमात्र वीतराग परिणति ही भव-समुद्र से तारने वाली तरणी है, संसार - सागर में गोते खाते प्राणियों को पार उतारने वाली नौका है। (५९) यद्यपि शुभ परिणति अशुभ की अपेक्षा अच्छी है, तभी तो उसका नाम शुभ है, परन्तु अशुभ परिणति की तरह वह शुभ परिणति भी भवसमुद्र को तारने के लिए 'तरणी' नहीं बन सकती; क्योंकि दोनों एक राग की से निर्मित होती हैं, जिसका फल संसार है और वीतराग परिणति धर्मरूप है, जिसका फल मोक्ष है। अतः वीतराग परिणति को ही भव समुद्र तरणी कहा है। हाँ, जितना योगदान लकड़ी की नौका बनाने में लोहे के कील-पुरजों का होता है, उतना योगदान वीतराग परिणति के साथ शुभराग का हो सकता है; पर नौका लकड़ी या काष्ठ की ही कहलाती है, लोहे की नहीं। (४४) सुखी जीवन से ~ ( १ ) वृद्धावस्था की शारीरिक शिथिलता और पारिवारिक प्रतिकूलताओं की विषम परिस्थितियों में भी हमारा शेष जीवन निराकुलता के साथ सुख से व्यतीत हो सके। मानव जीवन का पावन और अन्तिम उद्देश्य जो समाधि, साधना और सिद्धि है, वह भी सफल हो सके, एतदर्थ हमें इस कृति में उल्लिखित दर्शनशास्त्र के मौलिक सिद्धान्त समझने होंगे। ( २ ) हम सब सामाजिक प्राणी हैं। दिन-रात समाज के सम्पर्क में रहते हैं, इस कारण किसी न किसी रूप में समाज के साथ पारस्परिक सम्बन्ध तो होते ही हैं। वे सम्बन्ध हमारे स्वयं के मोह-राग-द्वेष एवं कषायों के कारण बनते-बिगड़ते भी रहते हैं। अतः मोह-राग-द्वेष को कम करने का उपाय जानने के लिए इस कृति को ध्यान से पढ़ें। ( ३ ) आज की दुनियाँ में खुले रूप में पाँचों पापों एवं सातों दुर्व्यसनों का ताण्डव नृत्य हो रहा है। विशेष दुःख तब होता है, जब ये पाप प्रवृत्तियाँ धर्म, उन्नति की आड़ में होती हैं, समाज सेवा और राष्ट्रोन्नति के नाम पर होती हैं। ( ४ ) आज भगवान राम और भगवान महावीर के धर्मप्राण देश में देवीदेवताओं की बलि और पीर पैगम्बरों की कुर्बानी के नाम पर ऊँट, भैंसे और बकरों जैसे असंख्य पशुओं को निर्दयतापूर्वक मारा-काटा जाता है। तथा माँस के बड़े-बड़े कत्लखाने चल रहे हैं। मुर्गे-मुर्गियाँ और मछलियाँ तो बेहिसाब मारी जा रही हैं। इस तरह दूध की जगह खून की नदियाँ बह रही हैं। मानवीय हिंसा के रूप में भी खुले आम भ्रूण हत्यायें हो रही हैं। यह

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