Book Title: Jina Khoja Tin Paiya
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 13
________________ संस्कार से उनकी वृत्ति स्वाधीन है, अतः सहजता से उनका समागम भी सम्भव नहीं है और रात में तो वे बोलते भी नहीं हैं। ऐसी स्थिति में एक मात्र शास्त्र ही तो हमारे लिए शरणभूत हैं। (५४) ___ घूस न लेने की प्रतिज्ञा तो हम तुम कोई भी कर सकता है, पर इस घूसखोरी के युग में घूस न देने की कसम कैसे खाई जा सकती है? पर घूस देना भी हर एक के बलबूते की बात नहीं है। इस कारण सीधे-सादे सज्जनों का, ईमानदार आदमियों का तो घर से बाहर निकलना ही कठिन हो गया है। जिन खोजा तिन पाइयाँ दूसरे, कुछ संस्कार ऐसे भी होते हैं, जो हमारे पूर्वभव-भवान्तरों से हमारे साथ आते हैं। राजुल-नेमीकुमार की विगत नौ भवों की पुरानी प्रीति कमठ और पार्श्वकुमार का पुराना इकतरफा वैर-विरोध तो आगम सिद्ध व लोक प्रसिद्ध है ही, और भी ऐसे अनेक पौराणिक उदाहरण है जो पूर्वभवों से चले आ रहे संस्कारों को सिद्ध करते हैं। यदि हम भी अपनी संतान को सुखी, समुन्नत, सदाचारी और सब तरह से समृद्ध देखना चाहते हैं तो हमारा कर्तव्य है कि हम भी उनमें ऐसे ही धार्मिक व नैतिक संस्कार डालें, जैसे वायुभूत के मामा ने अपने भानजे में डाले थे। (५१) जंगल में जमीन पर पड़े हुए वृक्षों के बीज जिसतरह हवा पानी पाकर अपने आप अंकुरित हो जाते हैं, उसीभाँति प्राणियों के जन्म-जन्मान्तरों के पूर्व संस्कार अनुकूल वातावरण पाकर विकसित हो जाते हैं। यदि जमीन में बीज ही न पड़ा हो तो अकेला हवा और पानी आदि का बरसाती वातावरण क्या कर सकता है? चिंगारी ही न हो तो अकेली हवा और ईंधन अग्नि का उत्पादन नहीं कर सकते। (५२) धन्य हैं वे माता-पिता जो अपनी संतान को भौतिक धनवैभव के साथ-साथ धर्म के संस्कार भी दे जाते हैं, णमोकार मंत्र भी दे जाते हैं और दे जाते हैं नित्य बोधक जिनवाणी, जिसे होनहार बालक समय पाकर पढ़ते हैं और लाभान्वित होते हैं। (५३) शास्त्र-पुराण ही इस अर्थ में नित्यबोधक हैं कि उन्हें जब जी चाहे उठाकर पढ़ा जा सकता है। इस कलिकाल में सर्वज्ञदेव की दिव्यध्वनि तो दुर्लभ है ही, निर्ग्रन्थ गुरु भी हर समय उपलब्ध नहीं हो सकते; क्योंकि मरने के बाद माता-पिता के प्रति भक्ति-भावना कुछ अधिक ही हो जाती है। उनके जीते-जी भले ही हम उनसे पानी की भी न पूछ पाये हों, पर मरने के बाद उनके चित्रों पर मालायें अवश्य डालते हैं। काश! उनके जीवनकाल में यदि हम उनकी भावनाओं की कुछ कद्र कर पायें तो उनकी आत्मा को अधिक संतुष्टि दे सकते हैं। काम! काम!! काम!!! जब देखो तब काम, घर में काम, बाहर काम, जहाँ जाओ वहाँ काम - इस कारण न सुबह चैन न शाम को चैन, न दिन में चैन न रात में चैन, चौबीसों घंटे बेचैन । ऐसा काम भी किस काम का? जिसके कारण खाना-पीना भी हराम हो जाता है, बाल-बच्चों को संभालना भी कठिन हो जाता है। (५७) यदि पुत्र सुपुत्र है तो भी धन का संचय व्यर्थ है और यदि पुत्र कुपुत्र है तो भी धन का संचय व्यर्थ ही है; क्योंकि यदि पुत्र सुपुत्र है, योग्य है, होनहार है तो स्वयं धर्नाजन कर लेगा। और यदि वह कुपुत्र है, तब सारा अर्जित धन विषयभोगों में बर्बाद कर देगा। (१३)

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