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देव-मनुज मे इस धरती पर
थोडी-सी ही दूरी है। पूर्ण विकास हुआ तो उसकी
यात्रा होती पूरी है।
सद्गुण के जो बीज हृदय मे
एक वार भर आते है। दिन-दिन वे वढते जाते है
कभी नही मिट पाते है।
जग मे जो भी आते आ के
भू का धर्म निभाते है। खेल-खेल मे दिव्य - ज्योति का
दर्शन स्वय कराते है।
वर्धमान के गुण की चर्चा
देवपुरी मे होती है। स्वय इन्द्र ने कहा कि वीरो
मे यह अद्भुत मोती है ।
जय महावीर | 51