________________
दृष्टिविप वह व्डा क्रूर था
सब को काट गिराता था। वडा भयकर था, वह वन मे
सव उत्पात मचाता था ।।
जगल मे उस राह न कोई
कभी भूल से चलता था। क्रोध-अध वह जिसे देखता
उस पर जहर उगलता था।।
प्रमु ने ज्यो ही देखा जगल
दया उमड कर आती है। प्रभु की पावन कृपा दृष्टि
वन प्रान्तर नहलाती है।
उसकी बॉबी के सम्मुख प्रभु
जाकर ध्यान लगाते हैं। कण-कण ध्यानावस्थित मन के
सौरभ खुद भर जाते है।
110/ जय महावीर