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कुपित स५ न सापा, ५७
कौन यहाँ पर आया है। किसे काल ने बरबस ऐसे
असमय ग्रास बनाया है।
उठा विकट फुकार मारता
__ तान भयकर फण काला । भीषण विप के विषम दाह से
लगता था वह मतवाला॥
किया प्रहार क्रुद्ध हो प्रभु पर
कम कर दाँत गडाता है। अग-अग मे विष से भग्वार
काँटा खूब चुभाता है ।।
लेकिन यह क्या, या अचम्भित
प्रभु को निश्चिल देख वहाँ। अरे अभागे हुआ वहीं क्या ?
जहर भयकर गया कहाँ ।
ज्य महावीर | 111