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प्रभु से उसको बडा द्वेष था
पहले किसी जनम मे। सोचा, विघ्न डाल दूं चल कर
इनके प्रकृति नियम मे।
सहसा ज्वार उठा गगा मे
ऑधी भीषण आई। लगा कि जैसे महाप्रलय की
धार उमड लहराई ॥
वहाँ नाव के अन्य सभी जन
बेहद थे घबडाये। क्रूर देव ने महा उपद्रव
के थे जाल विछाये ।।
किन्तु अचानक कम्बल-गम्बल
नाग-देव दो जाये। देखा नैया मे बैठे है.
प्रभवर ध्यान लगाये ।।