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व्याघ्र-सर्प-बिच्छू तक बन कर
उनको खूब डराया। नयी अप्सराओ को लाकर
मन भर उन्हे लुभाया॥
लेकिन इन उपसर्गो से भी
भगवान् तनिक न डोले। सव प्रहार सहते थे निर्भय
शान्त - विशुद्ध - अवोले ॥
ऐसे ही छग्माणि गाँव मे
भगवान स्वय पधारे । ध्यान लगा वे क्षय करते थे
पूर्व वार्म को सारे।।
कायोत्सर्ग ध्यान मे थे जब
वोई ग्वाला आया। पन्हे देखते रहना'-वह कर
वैन उन्हे दिखलाया।