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ब्रह्मचर्य है चौथा जिसका -
पालन वडा उचित है । ब्रह्मलीन इसके पालने से
रहता प्रतिपन्नचित है ॥
और पाँचवा अपरिग्रह हैइच्छाओ का
आवश्यक जो, ग्राह्य वही है
'जय-जय' के स्वर गूंजे नभ मे
अन्य मोह उद्धारक ॥
देव - लोक से प्रभु पर वरसे
90 / जय महावीर
गूंजा सव दिग्मण्डल ।
स्वय इन्द्र ने वाम कध पर
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धारक ।
अनाघ्रत नव शतदल ॥
वडा अलौकिक मूल्यवान-सा
देव-दूष्य पट डाला ।
निर्मल वडा निराला ॥
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