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इन्द्र स्वयं फिर दौडे आयेहाथ पकड कर सव समझाये । कहा कि देखो परम तत्व हैजग मे इसका नव महत्व है।
मत समझो, कोई साधारणजन है, यह तत्वो का कारण। वर्धमान है महावीर येतप. पूत भव-इष्ट धीर थे।
सुन कर, गोपालक के मन मेभाव जगा, कुछ नूतन क्षण मे। गिरा चरण पर अश्रु बहायाअपना सारा पाप मिटाया।
प्रभु का फिर गुण-गान सुना केचला हृदय से वह हर्पा के।
104 / जय महावीर