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कहाँ गये थे मुद्रा लाने
कीडी एक न लाई। घर का भी सव द्रव्य गॅवाया
अच्छी रही कमाई ॥
तुम से अच्छे अन्य मभी है
घर बैठे सब पाये। प्रभु ने वीदान समय तो
सब को सुखी बनाये।
उस अवसर पर वर्धमान ने
मुद्रा दान किया था। रोज हजारो मुद्राओ का
दान महान दिया था।
तुम रहते तो यह दिन मुझको
नही देखना पडता। निर्धनता के दुख का काँटा
नही हृदय मे (गडता।
94 / जय महावीर