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किन्तु अभागे, चूक तुम
अब मै कैसे बोलू । इस पीडा को, कहो, आज मै
किसके सम्मुख खोलूं ॥
मैं तो फिर भी, यह कहती हूँ
वही आज तुम जाओ। महावीर है जहाँ, वही पर
जाकर शीश नवाओ॥
दया-मूर्ति है, करुणा-सागर
निश्चय कृपा करेगे। पर-उपकार सिद्ध पुरुप है
सव दारिद्रय हरेगे॥
सोम विप्र को लगा कि जैसे
राह पड़ी दिखलाई। वर्धमान के दान-धर्म की
गाधा पडी मुनाई।
ज्य महावीर /95