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उल्टे पाँव- वहाँ से लौटे
मन ही मन सकुचाते। यही सोचते, कैसे प्रभु को
मन की बात बताते॥
लेकिन प्रभु सर्वन, सभी का
सव कुछ देख रहे है। बिना कहे, गति सब के मन की
क्षण-क्षण लेख रहे है ॥
सोम बढे, तो देखा आगे
उडता वह पट आया। यह आश्चर्य, वही झाडी मे
दिखा पडा उलझाया।
प्रभु की दया अपार हुई थी
हमने ही घर आये। आकर अपनी पत्नी को फिर
मन्दर पट दिखलाये॥
ज्य महाबीर / 99