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सिद्ध जगत मे सागर जैसे
है गम्भीर निरतर । कल्पवृक्ष-सा जग को देते
जान-लब्धि का अवसर ।।
जहाँ न सुख-दुख, पीडा कोई
अनुभव जन्म-मरण का। सिद्ध बताते वही मोक्ष है
कारण और करण का॥
जहाँ न तृष्णा, भूख-प्यास है
जहाँ न निद्रा विस्मय। मोह नही, उपसर्ग नही है
मोक्ष वही है निश्चय॥
सिद्ध 'अजीव' वही है, जिसको
सुख-दुख नही सताता। कभी अहित की आशका से
भीत नही हो पाता।
88 / जय महावीर