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इहना कह कर प्रभु ने तत्क्षण
साधु-धर्म स्वीकारा। पाँच महाव्रत के साधन को
__ मन मे तुरत उतारा॥
पहला व्रत है परम अहिसा
दु ख न जो उपजाता। पर पीडा मे जो लगता है
तम से तम में जाता।
सत्य-दूसरा जिसे जगत का
__ सारभूत ही मानो। सत्य अनन्त कि इसको अपना
परमेश्वर ही जानो॥
और अचौर्य नीसरा व्रत है
माधन का प्रिय सम्वल । लोभ-ग्रमित मन सिद्ध न होता
रहता प्रतिक्षण चचल ॥