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उस प्रहार से व्यथित देव ने
सद्विवेक सव खो डाला। आज पडा था उसे भयकर
पुरुप-सिह से ही पाला॥
होकर प्रकट तुरत निज तन मे
क्षमा मांगता है सत्वर । शान्त हुए फिर वर्धमान भी
अभय दान उसको देकर।।
बाल-मडली
हर्पित होकरमन से खुशी मनाती है। इनकी गाथासदा फैलती जाती है।
दूर-दूर तक
देव-लोक मे गुजित थे स्वर
देव सभी हाए थे। वर्धमान के जय की गाथा
सुनकर दौडे आए थे।
236/मंच महावीर