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ऐसा कभी नहीं कर सकतासिर पर पाप नही धर सकता।
अभी मात्र दो वर्ष यहाँ पररहो हमारे साथ वन्धु वर ।
फिर जो चाहोगे, कर लेनापुण्य जगत का सिर धर लेना।
कभी नही मै रोकूँगा फिरजगत तेरी ही है आखिर ।
इतना कह कर शान्त हुए जवमहावीर ने चरण छुए तव ।
फिर वे बोले-जो कहते हैखूव समझता, जो सहते है।
बात आपकी मान रहा हूँअलग आपसे भला कहाँ हूँ।
दो वर्षों तक अभी रहूँगायही तपस्या-ताप कहूँगा।
ज्य महावीर /71