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विनय सुनाकर देव वहाँ से
आये नील निलय मे। लगे सोचने महावीर भी
अपने शुद्ध हृदय मे॥
एक वर्ष ही शेष बचा है
प्रवज्या लेने मे। चलो लगूं मैं अभी यही से
अपना सब देने मे॥
मुक्त हस्त से दान सभी को
देते है नित उठकर । मणि-धन-वरत्राभूपण कितने
नव-नव किए निछावर ॥
गेह-त्याग के पूर्व यही तो
सवसे उत्तम साधन । महावीर ने लिया खुशी से
उसका ही आलम्बन ।।
ज्य महावीर /75