________________
अगरु-धूप चन्दन से वासित
तन पर लेप लगाया। तन पर रेणम वस्त्राभूपण
प्रभु को वहाँ पिन्हाया॥
पुष्प सदा अम्लान रहे जो
उसकी माला लेकर। खुशी मनायी नर-नारी-ने
भेट हृदय से देकर ।।
दीक्षा की वह शोभा यात्रा
उमडी राज नगर से। बाल-वृद्ध औ युवक-युवतियाँ
निकल पड़ी घर-घर से॥
परम सिद्धि की प्राप्ति हेतु प्रभु
निकले राजमहल से। आत्मा को परिलक्ष्य बनाये
भव के कोलाहल से॥
84 / जय महावीर