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ऐसा होकर आत्मा खुद
परमात्मा ही बन जाती। फिर वह सारे कर्मों से खुद
छुटकारा है पानी ।।
खुद गवेपणा करनी होगी
आत्मा ही के द्वारा। नष्ट न होता आत्मा का यह
सात्विक दृढ ध्रुव तारा॥
महावीर ने जान लिया जो
भाव हृदय में जगता। वही मूल बन्धन का कारण
जीवो में है लगता ॥
इससे मुक्ति प्राप्त करना ही
__केवल ध्येय मनुम का। कभी नही बन्धन मे रहना
कोई श्रेय मनुज का ॥
82 / जय महावीर