________________
गूंज रहा था जय-जय का स्वर
देव-गणो के कानो मे। वर्धमान की जय के स्वर थे
गुजित पवन तरानो मे ।।
कल्पवृक्ष
की डाली-डालीइस स्वर को दुहराती थी।
की माल्यवती सेइसकी ही ध्वनि आती थी।
स्वर्ग-लोक
मलय पवन चलता था, वह भी
जय का ही स्वर लाता था। वर्धमान की जय का स्वर ही
सभी तरफ से आता था।
नन्दन वन के फूल सुकोमल
विहँस-विहम खिल जाते है। उनके सौरभ मे भी जय के
स्वर ही भर कर आते है।