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राग-रंग तो सब होते थेइनमे पर वे कब खोते थे।
इनमे इन से ऊपर रह कर। रत थे साधन मे सव सह कर ।
कोई इनको बाँध न पायाकिसी लोभ ने नहीं सताया।
पत्नी आई, रहे अकम्पितपुत्री भी आती थी पुलकित।।
किन्तु ग्रहण का भाव नही थावन्धन-स्नेह-प्रभाव नहीं था।
जल मे रह कर जल से ऊपरसरसिजवत् ही थे जीवन भर ।
कठिन साधना का तप सहतेभव मे भव से ऊपर रहते।
बढता आया समय निरन्तरमहाराज थे चिन्तित भू पर।
जय महावीर 67