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शोभा पूरे राज नगर की
गली-गली की डगर-डगर की। ऐसी थी मन मोहक, जिसकीउपमा देना किसके बस की।
लोग-बाग सब सजे-धजे थे।
घर-घर बाजे खूब बजे थे। सभी तरफ बस सुख लुटता थामानो दुख का दम घुटता था ।
धूम धाम से व्याह रचाया
जिसने माँगा जो भी, पाया। मिली यशोदा महावीर सेज्ञान-दीप, दृढ, परम धीर से।
राग रग सव होते घर-घरसर-सर सरते मुख के निर्झर ।
पुत्री एक हुई फिर चचलदूध-धुला तन कोमल-कोमल ।
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