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स्वयं नृपति सिद्धार्थ विकल थेपुत्र मोह से खुद चचल थे।
विमल 'ज्ञान शाला' मे जा केवर्द्ध मान को खुद घेठा के।
सोचा, निर्मल ज्ञान मिलेगाभूतल पर सम्मान मिलेगा।
पता नही था, जो है कर्ताआखिर भुवन का पोपक भर्ता।
वही देह धर मूर्त खडा है
__ जग का फिर क्या तत्व बडा है। हस्तामलक उसे सब रहताउसकी वाणी से सब कहता।
भू पर इन्द्र उतर आते हैस्वय 'ज्ञान शाला' जाते है।
खुद ही लेकरके आसन पर।
महावीर को वैठते गुरु
62 / जय महावीर