Book Title: Jainpad Sangraha 03
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 8
________________ (२) पद संख्या. पद संख्यामा विलब न लाव पठाव तहाँ री १४ ) शेप सुरेश नरेश ग्टै तोहि ४८ मेरी जीभ आठी जाम २५ | श्रीगुरु शिक्षा देत हे सुनि पानी रे ७८ मेरे चारों शरन सहाई ४ | सब विधि करन उतावला २३ मेरे मन सूवा, जिनपद सीमधर स्वामी, में चरननका चेरा , म्हे तो थाकी आज महिमा जानी ५६ सन ज्ञानी प्राणी, श्रीगुरु सीख सयानी ८ यह तन जगम रूखडा सुनियो भवि ६६ सुनि ठगनी माया, तें सब जग टग १ रखना नहीं तनकी खबर, अनहद ८. सुनि सुनान । पाँचो रिपु वशरि ५२ रटि रमना मेरी ऋपभ जिनद २४ सुनि सुनि हे साधनि। म्हारे मनकी ६९ वा परके वारणे जाऊ | सो गुरुदेव हमारा हे साधो ६१ वीग १ था। वान बुरी परी रे ७ सो मत सांचो है मन मेरे २ वे कोई अजय तमासा स्वामीजी साची सरन तुम्हारी वे मनिवर कब मिलि है उपगारी १५ ह तो कहा करु क्ति जाऊ २९ लंगी लो नाभिनदनसों १ होगे खेलोगी घर आये चिदानदन्त १०

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