Book Title: Jainpad Sangraha 03
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 17
________________ L तृतीयभाग । ९ ॥ १ ॥ गिर-सिर दिवेला जोइया, चहुँदिशि चाजै पौन । वलंत अचंभा मानिया, बुंझत अचंभा कौन || जगमें ० ॥ २ ॥ जो छिन जाय सो आयुमैं, निशि दिन ट्रैकै काल | वांधि सकै तो है भला, पानी पहिली पाल || जगमें ||३|| मनुषदेह दुर्लभ्य है, मति चूकै यह दाव । भूधर राजुलकंतकी, शरण सिताबी आव || जगमें० ॥ ४ ॥ १२. राग ख्याल 1 / गरव नहिं कीजै रे, ऐ नर निपट गँवार ॥ टेक ॥ झूठी काया झूठी माया, छाया ज्यों लखि लीजै रे ॥ गरव ० ॥ १ ॥ कै छिन सांझ सुहागरु जोबन, कै दिन जगमें जीजै रे || गरव० ॥ २ ॥ बेंगा चेत विलम्ब तो नर, बंध बढ़े तिथि छीजै रे ॥ गरव० ॥ ३ ॥ भूधर पलपल हो है भारी, ज्यों ज्यों कमरी भीजै रे || गरव० ॥ ४ ॥ १३. राग ख्याल | थांकी कथनी म्हांनें प्यारी लगे जी, प्यारी १ दीपक । २ चले । ३ निकट आवे । ४ श्रीनेमिनाथकी । ५ जीवेंगे | ६ जल्दी । ७ आयु ।

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