Book Title: Jainpad Sangraha 03
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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जैन पदसंग्रह -
३८. राग काफी । मनहंस ! हमारी लै शिक्षा हितकारी ॥टेक॥ श्रीभगवानचरन पिंजरे वसि, तजि विषयनिकी यारी ॥ मन० ॥ १ ॥ कुमति कागलीसौं मति राचो, ना वह जात तिहारी । कीजै प्रीत सुमति हंसीसौं, बुध हंसनकी प्यारी ॥ मन० ॥ २ ॥ काहेको सेवत भव झीलेर, दुखजलपूरित खारी । निज बल पंख पसारि उड़ो किन, हो शिव सैरवरचारी ॥ मन० || ३ || गुरुके वचन विमल मोती चुन, क्यों निज वान विसारी | सुखी सीख सुधि राखें, भूधर भूलैं ख्वारी
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॥ मन० ॥ ४ ॥
२८
३९. राग ख्याल कान्हडी ।
एजी मोहि तारिये शान्तिजिनंद ॥ टेक ॥ तारिये तारिये अधम उधारिये, तुम करुनाके कंद ॥ एजी० ॥ १ ॥ हथनापुर जनमैं जग जानें, विश्वसेननृपनन्द || एजी० ॥ २ ॥ धनि ह माता ऐरादेवी, जिन जाये जगचंद ||
१ झील । २ सरोवर-तालाचका रहनेवाला |
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