Book Title: Jainpad Sangraha 03
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 34
________________ जैन पदसंग्रह - ३५. राग बंगाला । आया रे बुढापा मानी सुधि बुधि विसरानी ॥ टेक ॥ श्रवनकी शक्ति घटी, चाल चालै अटपटी, देह लेटी भूख घटी, लोचन झरत पानी ॥ आया २० ||१|| दाँतनकी पंक्ति टूटी, हाड़नकी संधि छूटी, कायाकी नगरि लूटी, जात नहिं पहिचानी ॥ आया रे० ॥ २ ॥ बालोंने वैरन फेरा, रोगने शरीर घेरा, पुत्रहू न आवै नेरा, औरोंकी कहा कहानी ॥ आया रे० ॥२॥ भूधर समुझि अब, स्वहित करैगो कब, यह गति है है जब, तब पिछ है प्रानी ॥ आया रे० ॥ ४ ॥ ३६. राग सोरठ | २६ अन्तर उज्जल करना रे भाई ! ॥ टेक ॥ कपट कृपान तजै नहिं तबलौं, करनी काज न सरना रे ॥ अन्तर० ॥ १ ॥ जप तप तीरथ जज्ञ व्रतादिक, आगमअर्थउचरना रे । विषय कषाये कीच नहिं धोयो, यों ही पाच पाच मरना रे ॥ १ इसकी भी टेकें निकाल देनेसे घनाक्षरी बन जाता है । २ कमजोर हुई । ३ रंग । ४ निकट |

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