Book Title: Jainpad Sangraha 03
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 76
________________ जैन पदसंग्रहअर्थ लैं, अरज करी हितकाज । शरणागत भूधरतणी, राखौ जगपति लाज ॥ हमारी॥८॥ _ /८०. गजल । . रखता नहीं तनकी खबर, अनहद बाजा बा.जिया घटबीचमंडल वाजता,बाहिर सुनातोक्या हुआ ॥१॥ जोगी तो जंगम सेवड़ा, बहु लाल कपड़े पहिरता । उस रंगसे महरम नहीं; कपड़े रंगे तो क्या हुआ ॥२॥ काजी किताबें खोलता, नसीहत बतावै औरको । अपना अमल कीन्हानहीं, कामिल हुआ तो क्या हुआ॥३॥ पोथीके पाना बांचता, घरघर कथा कहता फिरै । निज़ ब्रह्मको चीन्हा नहीं, ब्राह्मण हुआ तो क्या हुआ ॥४॥गांजारुभांग अफीम है, दारू शराबा पोशता । प्याला न पीयाप्रेमका, अमली हुआ तो क्या हुआ॥ ५॥शतरंज चौपरगंजफा, बहु मर्द खेलें हैं सभी । बाजी न खेली प्रेमकी, ज्वारी हुआ तो क्या हुआ॥६॥भूधर बनाई वीनती, श्रोता सुनो संब कान दे। गुरुका वचन माना नहीं, श्रोता हुआ तो क्या हुआ.॥७॥' -

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