Book Title: Jainpad Sangraha 03
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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तृतीयभाग। एजी०.॥३॥ भूधर विनवै दूर करो प्रभु, सेवकके भवद्वद ॥ एजी० ॥४॥
४०. राग ख्याल । / और सब थोथी वातें, भज ले श्रीभगवान ।। टेक ॥ प्रभु विन पालक कोई न तेरा, स्वारथमीत जहान ॥ और० ॥ १ ॥ परवनिता जननी सम गिननी, परधन जान पखान । इन अमलों परमेसुर राजी, भाचे वेद पुरान ॥ और० ॥२॥ जिस उर अन्तर वसत निरन्तर, नारी औगुनखान । तहां कहां साहिवका वासा, दो खांड़े इक म्यान ॥ और० ॥३॥ यह मत सतगुरुका उर धरना, करना कहिं न गुमान । भूधर भजन न पलक विसरना, मरना मित्र निदान ।। और० ॥ ४ ॥
४१. राग प्रभाती। । अजित जिन विनंती हमारी मान जी, तुमः लागे मेरे पान जी ॥ टेक ॥ तुम त्रिभुवनमें कलप तरोवर, आस भरो भगवान जी ।।
१ दो तलवार ।

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