Book Title: Jainpad Sangraha 03
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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जैन पदसंग्रहलाजत काम ॥ मेरी० ॥२॥ करि थुति गान थके हरि राम, गनि न सके गणधर गुनग्राम ॥ मेरी० ॥ ३ ॥ भूधर सार भजन परिनाम, अर सब खेल खेलके खाम (?) ॥ मेरी० ॥ ४ ॥
___२६. राग धमाल । देखे देखे जगतके देव, राग रिसंसौं भरे ॥ टेक ॥ काहूके सँग कामिनि कोऊ आयुधवान खरे ॥ देखे० ॥१॥ अपने औगुन आपही हो, प्रकट करैं उघरे । तऊ अबूझ न बूझहिं देखो, जन मृग भोरेप रे ॥ देखे० ॥२॥ आप भिखारी है किनही हो, काके दलिद हरे । चढ़ि पाथरकी नावपै कोई, सुनिये नाहिं तरे ॥ देखे० ॥३॥ गुन अनन्त जा देवमैं औ, ठारह दोष टरे, । भूधर ता प्रति भावसौं दोऊ, कर निज सीस धरे ॥ देखे०॥४॥
२७ देखो गरबगहेली री हेली ! जादोंपतिकी 'नारी ॥ टेक ॥ कहां नेमि नायक निज मुखसौं,
१ द्वेषसे । २ भोलापन ।

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