Book Title: Jainpad Sangraha 03
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 30
________________ जैन पदसंग्रह ३०. राग सोरठ। चित ! चेतनकी यह विरियाँ रे ॥ टेक ॥ उत्तम जनम सुतन तरुनापौ, सुकृत बेल फल फरियाँ रे॥चित०॥१॥ लहि सत संगतिसौं सब समझी, करनी खोटी खरियाँ रे । सुहित सँभा'लि शिथिलता तजिकै, जाहैं वेली झरियाँ रे॥ चित०॥२॥ दल बल चहल महल रूपेका, अर कंचनकी कलियाँ रे । ऐसी विभव बढ़ी कै बढ़ि है, तेरी गरज क्या सरियाँ रे ॥ चित० ॥३॥ खोय न वीर विषय खल सौटें, ये कोरनकी धरियाँ रे । तोरि न तनक तंगाहित भूधर, मुकताफलकी लरियाँ रे ॥ चित० ॥४॥ ३१. राग पंचम । | आज गिरिराजके शिखर सुंदर सखी, होत है 'अतुल कौतुक महा मनहरन ॥ टेक ॥ नाभिके नंदकौं जगतके चन्दकौं, ले गये इन्द्र मिलि जन्ममंगल करन ॥आज०॥१॥ हाथ हाथन धरे सुरन १ जवानी । २ पुण्य । ३ बदलेमें । ४ करोडोंकी । ५ धागा. डोराके लिए । ६ रहीं।

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