Book Title: Jainpad Sangraha 03
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ तृतीयभाग। सब विधि० ॥१॥ जैसे कर्म कमाय है, सो ही फल वीरा ! । आम न लागै आकके, नग होय न हीरा ॥ सव विधि०॥२॥ जैसा विषयनिकों चहे, न रहै छिन धीरा । त्यों भूधर प्रभुकों जपै, पहुँचे भवतीरा ॥ सब विधि० ॥३॥ २४. राग बिलावल । रटि रसना मेरी ऋषभ जिनन्द, सुर नर जच्छ चकोरन चन्द ॥ टेक॥ नामी नाभि नृपतिके वाल, मरुदेवीके कँवर कृपाल ॥ रटि० ॥ १ ॥ पूज्य प्रजापति पुरुष पुरान, केवल किरन धरै जगभान ॥ रटि०॥२॥ नरकनिवारन विरद विख्यात, तारन तरन जगतके. तात॥रटि०॥३॥ भूधर भजन किये निरबाह, श्रीपद-पदम भँवर हो जाह ॥ रटि० ॥ ४ ॥ २५. राग गौरी। .. मेरी जीभ आठौं जाम, जपि जपि ऋषभजिनिंदजीका नाम ॥टेक॥ नगर अजुध्या उत्तम ठाम, जनमें नाभि नृपतिके धाम ॥ मेरी० ॥१॥ सहस अठोत्तर अति अभिराम, लसत सुलच्छन २ भाग ३

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77