Book Title: Jainpad Sangraha 03
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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तृतीयभाग ।
११
॥ १ ॥ में श्रीनेमिदिवाकरको कव, देखों वदन उजारो । विन देखें मुरझाय रह्यो है, उर अरविंद हमारो री ! ॥ मा विलंब ० ॥ २ ॥ तन छाया ज्यों संग रहोगी, वे छांहिं तो छांरो । विन अपराध दंड मोहि दीनो, कहा चलै मेरो चारो ॥ मा विलंब० ॥ ३ ॥ इहि विधि रागउदय राजुल नैं, सह्यो विरह दुख भारो । पीछें ज्ञानभांन वल विनश्यो, मोह महातम कारो री ॥ मा विलंव० ॥ ४ ॥ पियके पेंड़े पेंड़ौ कीनों, देखि अथि जग सारो । भूधरके प्रभु नेमि प्रियासों, पाल्यौ नेह करारो री ॥ मा विलंब० ॥ ५ ॥
१५. राग ख्याल |
देख्यो री ! कहीं नेमकुमार ॥ टेक ॥ नैननि प्यारो नाथ हमारो, प्रानजीवन प्रानन आधार ॥ देख्यो० ॥ १ ॥ पीव वियोग विथा वहु पीरी, पीरी भई हलदी उनहार । होउं हरी तवही जव भेटों, श्यामवरन सुंदर भरतार || देख्यो० ॥ २ ॥
1
१ सूरज | २ कर्मठ | = सूर्य । 3 पीड़ा की । ५ पीली ६ समान ।

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