Book Title: Jainpad Sangraha 03
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 14
________________ ६ जैन पदसंग्रह - नर धार रे । रटि नाम राजुलरमनको, पशुबंध छोड़नहार रे || मेरे मन० ॥ ४ ॥ ७. राग सोरठ । भलो त्यो वीर नर तू, भलो चेत्यो वीर ॥ टेक ॥ समुझि प्रभुके शरण आयो, मिल्यो ज्ञान वजीर || भलो० ॥ १ ॥ जगतमें यह जनम हीरा, फिर कहां थो धीर । भली वार विचार छाड्यो, कुमति कामिनि सीरे ॥ भलो • ॥ २ ॥ धन्य धन्य दयाल श्रीगुरु, सुमरि गुणगंभीर । नरक परतैं राखि लीनों, बहुत कीनी भीरं ॥ भलो ० ॥ ३ ॥ भक्ति नौका लही भागनि, कितक भवदधिनीर | ढील अब क्यों करत भूधर, पहुँच पैली तीर ॥ भलो० ॥ ४ ॥ ८. राग सोरठ । सुन ज्ञानी प्राणी, श्रीगुरु सीख सयानी || टेक ॥ नरभव पाय विषय मति सेवो, ये दुर-गति अगवानी ॥ सुन० ॥ १ ॥ यह भव कुल यह तेरी महिमा, फिर समझी जिनवानी १ सॉझा । २ सहाय । ३ कितना ।

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