Book Title: Jainpad Sangraha 03 Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay View full book textPage 7
________________ पदोंकी वर्णानुक्रमणिका । पद संख्या अजित जिन विनती हमारी अजिन जिनेनर अनहग्ण अन्तर उज्जल करना रे भाई अब नित नेनि नाम भजो अब पूरीकर नीवडी सुन जीया रे अब मन मेरे वे, सुनि मुनि तीन सयानी ७० १९ ૨૮ अब मेरे समक्ति सादन आयो अरज करे नागे गजुल अरे मन करे, श्रीहथिनापुरकी जान५७ अरे । हा चेतो रे माई वर सुदुर नवी३१ ४९ देवे देवे जगतके देव દૃઢ वो गरली अहो | जगतगुरु एक, मुनियो अज्ञानी पाप धनूग न बोय आज गिनिज आदि पुरुष मेरी आत नगेजी आया रे बुढ़ापा नानी धि धि आरती आदि जिनिंद तुम्हारी एजी मोहिताग्येि शान्ति जिन ऐनी समझ तिर धूल रेनो श्राव कुल तुन पान ओर नच धोथी बातें करणाल्यो जिनगज हमारी, करुणा ७९ काना गागर जोजरी, तुम देखो० ५५ गरव नहि कीजे रे, ऐ नर निपट गंवार १२ चरखा चलता नाही, चम्सा हुजा चिन चेतनकी यह विरियों ने ३९ | देखो भाई आनम देव विगजे ढेग्न्यो गे। कहीं नेमिकुमार ६४ प्रभु गुन गाय, यह आंतर फेर न ३२ ४० ६७ ३० जगन जन जूवा हारि चले जगमे जीवन धोरा, रे अज्ञानी ४५ > ३६ शुभ ३५ तुम तरन तारन भवनिवाग्न ७२ 1 तुम मुनियो साचो मनुवा मेग ज्ञानी५० ६० । ते गुरु मेरे मन बनो, जे भव० त्रिभुवनगुरु स्वामी जी st ५८ ११ पद संख्या जगमे श्रद्धानी जीव जीवनमुक्त ३४ जपि माला जिनवर नामकी rr १७ દ ६३ ७Y | जिनगज चग्न मन मन बिन जिनगज ना विनागे जीवना बन तर बडो जे जगपूज परमगुमनामी नहीं ले चल । जहाँ जाडोपति प्यारा५९ te ७५ थाकी कथनी म्हाने पारी लगे जी १३ नेमि बिना न रहे मेरो जिबग २१ नेननिको वान पर्ग, इग्ननकी पारम-पद-नख-प्रकाश, अन्न वग्न पुलकन्त नयन चकोर पक्षी बन्दों शम्बरस्वग्न नगवन्नमजन क्यों मूला म त्यो चीर नर तू भाव देखि हवी भगवानकी ૫ ૨૬ २७ ५३ १५ ५१ ४७ ७१ ७३ ૧૯ मन मूरख पथी, उस मारग मतिजाय २ मनन । हमारी ले शिक्षा हिनकारी ३८Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 77