Book Title: Jainpad Sangraha 03
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 11
________________ तृतीयभाग फिरि कीनों फेरा । तुम महिमा जानी नहीं प्रभु, देख्या दुःख घनेरा ॥ सीमंधर० ॥ २ ॥ भाग उदयतें पाइया अब, कीजै नाथ निबेरा । बेगि दया करि दीजिये मुझे, अविचलथान वसेरा ॥ सीमंघर० || ३ || नाम लिये अघ ना रहै ज्यों, ऊगे भान अँधेरा । भूधर चिन्ता क्या रही ऐसा, समरथ साहिव तेरा ॥ सीमंधर० ॥ ४ ॥ ४. राग सोरठ । वा पुरके वारण जाऊं ॥ टेक ॥ जम्बूद्वीप विदेहमें, पूरव दिश सोहै हो । पुंडरीकिनी नाम है, नर सुर मन मोह हो ॥ वा पुर० ॥ १ ॥ सीमंघर शिवके धनी, जहँ आप विराजै हो । बारह गण विच पीठपै, शोभानिधि छाजै हो ॥ वा पुर० ॥ २ ॥ तीन छत्र माँ दिपैं वर चामर वीजै हो । कोटिक रैतिपति रूपपै, न्यौछावर कीजै हो ॥ वा पुर० ॥ ३ ॥ निरखत विरख अशो १ अपार । २ मोक्ष । ३ पाप । ४ दरवाजे । ५ मस्तकपर । ६ दुरता है । ७ कामदेव । ८ वृक्ष ।

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