Book Title: Jainendra ka Jivan Darshan Author(s): Kusum Kakkad Publisher: Purvodaya Prakashan View full book textPage 9
________________ विषय परिच्छेद -८ परिच्छेद ६ परिच्छेद १० विभिन्न जीवन दृष्टि, सतवाद, मार्थिक वैषम्य, सदाचरण, पैसा प्रोर व्यक्ति, पजीवादी टि, साम्यवादी दृष्टि, ट्रस्टीशिप, मनुष्य पर मशीन, शारीरिक श्रम, मानव-चरित्र विज्ञान, प्रजातन्त्र, सर्वोदय प्रात्यात्मिक मूल्यो की प्रतिष्ठा । जेनेन्द्र परम्परा और प्रयोग साहित्य से उपन्यास का महत्व, उपन्यास - साहित्य की परम्परा, उपन्यासकार प्रेमचन्द, गाहित्य का परिवर्तनशील सत्य, साहित्य मे जेनेन्द्र का प्रानिर्भाव, व्यक्ति प्रोर प्रतश्नेतना, जेन सुवारवादी नही, साहित्य कल्याणमय, साहित्य र समाज, साहित्य और ट्रैकनीक, रहस्यमयता, जेनेन्द्र की भाषा, नोकोत्तर तथा मानवेत्तर विषय गोरारिक विषय, साहित्य श्रास्तिकता, सामाजिक दृष्टि चिरन्तन सत्य | पृष्ठ संख्या २४६-२६६ जैनेन्द्र और सत्य २७० सत्य जिज्ञासामूलक, परमसत्य श्रद्धेत साहित्य सत्य का स्वरूप, सत् का भाव सत्य, पुरण सत्य अज्ञेय, सत्यवोच प्रनुभवादित, सत्य का व्यावहारिक रूप, सत्य का स्वरूप काल से तद्गत नही, सत्य शिव सुदर, सत्य घटना में निम्रत सत्य और वास्तव, जैनेन्द्र साहित्य का मूल्य, सत्य उत्सग मे, प्रेम समग्र और सहज, न्तर्भुत पीडा, साहित्यादर्श सत्य की स्वीकृति, सत्य जगत - सापेक्ष । जैनेन्द्र जीवन का सश्लेषणात्मक दृष्टिकोण २६० दर्शन avsaratधक, विज्ञान विश्लेषणात्मक, २८६ ३०८Page Navigation
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