Book Title: Jainendra ka Jivan Darshan Author(s): Kusum Kakkad Publisher: Purvodaya Prakashan View full book textPage 7
________________ विषय पृष्ठ सख्या सृष्टा भी है, ईश्वर को तर्क द्वारा सिद्व नही किया जा सकता, जैनेन्द्र की तर्कशुन्य प्रास्था, अद्वैत दृष्टि, देवी-देवता मे अविश्वास, ईश्वर स्वयभू, ईश्वर का स्वरूप, ईश्वर प्रानन्द स्वरूप, सत्य ही ईश्वर है, सगुण ईश्वर, ईश्वर प्रेममय, ईश्वर-प्रेम वियोगप्रवान, लौकिक जीवन मे ईश्वरीय आस्था, ईश्वरीय आस्था द्वारा जीवन मे व्यवस्था, प्रार्थना का महत्व, "श्वर अज्ञेय हे, ईश्वर भाग्यविधाता। परिच्छेद–३ जैनेन्द्र और धर्म ८५---११५ जेनेन्द्र की वार्मिक दृष्टि, जैन दर्शन, जनेन्द्र के अनुसार धम का अर्थ और स्वरूप, धर्म और सम्प्रदाय, धम और विज्ञान, धर्म और राजनीति, जैनेन्द्र की दृष्टि में हिसा, जैनेन्द्र के विचार-गाधी और जेन दशन, अपरिग्रह, परहित, जीवन में धर्म की आवश्यकता, जनन्द्र की दृष्टि मे मोक्ष । परिच्छेद-४ जैनेन्द्र की दृष्टि में भाग्य, कर्म-परम्परा एव मृत्यु ११६-१४४ भाग्यवादी जैनेन्द्र, पाश्चात्य नियतिवादी और अनियतिवादी विचार, जैनेन्द्र अतिशय भाग्यवादी, भाग्यवादिता आस्थामूलक, भाग्य से विद्रोह नही, निष्काम कर्मभाव, पुरुषार्थ, भाग्य और पुरुषार्थ सहयोगी, कर्माकर्मभाव, पुनर्जन्म, सस्कार समष्टि को प्राप्त, कर्म की स्थिति विभिन्न दार्शनिक सन्दर्भ, जैनेन्द्र की दृष्टि और सामान्य अभिमत, प्रतिभा अध्यवसायमूलक, जीव-वैज्ञानिक दृष्टि, क्षतिपूर्ति, भारतीय दर्शन और पुनजन्म, परलोक, मृत्यु, मृत्यु एक अनिवार्यPage Navigation
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