Book Title: Jainendra ka Jivan Darshan
Author(s): Kusum Kakkad
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 6
________________ विषयानुक्रमणिका विषय पृष्ठ मन्या प्राक्कथन परिच्छेद-- :- : जैनेन्द्र के जीवन-दर्शन की भूमिका दर्गन क्या है , जैनेन्द्र का व्यवहार-दयन जैनेन्द्र जीवन के ज्वलन्त प्रग्ना के समाधान मानव-ज्ञान और मानव-परिस्थिति मे सम्बन्धित अनेक प्रश्नों पर विचार और जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण मनुष्य द्वारा विवामित जीवविज्ञान अथशास्त्र, गजनीति, दर्शन मनविज्ञान लगन निष्ठा, दायित्व प्रेम-माहार्द्र आदि का महत्व प्रान्मनिष्ठा ही अधिक है व्यक्तिचेतना और कालखण्ड से ऊपर उठने की चेष्टा नव प्रचारक नहीं है वृद्धि की प्रगल्भता में माथ-साथ हृदय की प्रासादिकन' मानवता के शाश्वत प्रश्नों पर विचार-१-ईश्वर २-जीव ३-अध्यात्म ४-राष्ट्रीय जीवन की समस्या और वाह्य प्रभाव । परिच्छेद–२ जैनेन्द्र के ईश्वर सम्बन्धी विचार ईश्वर के अस्तित्व का बोध, जैनेन्द्र की आस्तिकना, ईश्वर सम्बन्धी दार्शनिक और वैज्ञानिक दृष्टि, जैन दर्शन, पाश्चात्य दृष्टि आधुनिक विचारको की आस्तिकता, सृष्टि है इसलिए उसका

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