Book Title: Jain Yug 1931
Author(s): Harilal N Mankad
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 96
________________ फ वीर संवत् २४५७. जैन युग. ― हिन्दी विभाग सप्तभंगी. लेखक: साहित्य पंडित दरबारीलाल न्यायतीर्थ एक समय मैं विद्यालयके छात्रोंको स्याद्वादका परिचय दे रहा था । स्याद्वादके व्याख्यानमें बारबार सप्तभंगीका नाम आया। एक विनोदी विद्यार्थीने पूछा "आप बारबार, “भंगी–भंगी” क्या कहते हैं; जैन शास्त्रोंमें क्या 39 भंगी की भी जरूरत है? जैसी विनोदपूर्ण भाषा में प्रश्न पूछा गया था अगर उत्तर उसी तरह न दिया जाय तो उसका कुछ फल न होगा । उत्तर इस ढंगसे दिया जाना चाहिये जिससे विनोदमी हो, शास्त्रानुकूल उत्तरभी हो तथा कॉलेज के छात्रोंके लिये रूचि - करभी हो। मैंने कहा हां ! जैन शास्त्रोंमें भंगीकीभी जरूरत है। आप जानते हो कि भंगीका काम सफाई करना है। अगर किसी शहरमें भंगी न हो तो वह शहर चार दिनमें बास उठेगा उसकी सडकें गदली हो जायगी । उन परसे रस्ता चलना मुश्किल हो जायगा। जब इन छोटी छोटी सडकेांके लिये मंगीची जरूरत है तो मोक्षाकी सडक (मोक्ष मार्ग) के लिये भंगीकी जरूरत है तो मोक्षकी सडक (मोक्ष मार्ग ) के लिये भंगीकी जरूरत क्यों न होगी ! भगवान् महावीरने मोक्षके लिए जो सड़क बनाई थी उसकी सफाई करनेके लिए उनने अपभंगी नियुक्त किये थे। उनका उल्लेख यहां सप्तमं शब्दसे किया गया है। विद्यार्थी मुत्कराये। मेर उत्तरले उनके विनोदको ताविकरूप दे दिया। विद्यार्थी तो उस विनोदको भूल गये परन्तु मुझे कभी कभी इसका स्मरण हो ही जाता है । बात तो हंसी है परन्तु इस हंसीमे कैसा कठोर सत्य छिपा है! अगर हमने सप्तभंगीकी पर्वाह की होती तो आज हमारी यह दशा न होती। हम रुढियोंके गुलाम न होते, हम सडे हुए कपडे के समान चिथडे चिथडे होकर अनेक सम्प्रदायोंमें न बंट जाते। हम जैन कुलमें पैदा होकर जैनत्वसे विमुख न होते । 5 सप्तमं मुख्य भंग दो है अस्ति और 'नास्ति' प्रत्येक वस्तु अपने द्रव्य क्षेत्र काल भावसे अस्तिरुप है और परवत्र्य क्षेत्र काल भावसे नास्तिरूप हैं । यह बात कितनी सरल और अनुभवगम्य है कि एक बच्चाभी ता. १५-७-३१. इसे स्वीकार कर सकता है। मोहन जिस समय चौपाटीपर है उस समय वह कोटमें नहीं है इस सीधीसी बातको कौन न स्वीकार करेगा ? चौपाटीकी अपेक्षा मोहन है कोटकी अपेक्षा नहीं है यही तो स्याद्वाद है। यही जैन धर्मकी विशेषता है। कहा जा सकता हैं कि इस सीधी सी बात को तो दुनिया स्वीकार करती है इसमें जैन धर्मको विशेषता क्या हो गई ? ऐसे प्रश्नकर्ताको माट्टम नहीं है कि यह सीधीसी बात दुनियाके बहुत कम आदमी समझते हैं। चौपाटी और कोटमें होने न होने की बात में लोगों को भले ही इतराज न है तब लोगों को इसकी महत्ता माहम हो जाती हैं। उस हो परन्तु जब यही छोटीसी बात गम्भीर विषयांमें पहुंचती समय अगर लोग इस छोटीसी बातका विरोध न करें और यथा शक्ति उसके अनुसार चलने लगें तो आजभी मर्त्यलोक इतना सुखमय हो सकता है कि स्वर्गलोकको भी इसे देखकर इर्ष्या होने लगे । आज समाज और राष्ट्रोंमें जितनी अशान्ति नजर आती है वह इसी छोटीसी बातको न समझनेका परिणाम हैं। मे जो नियम हितकर ये आज अहितकर हो सकते हैं। अगर आज लोगों से कहा जाय कि हमारे बाप दादेकि समयमें थे अगर उनसे कहा जाय कि किसी समय उपजातियों (अवा तर जातियों से भले ही लाभ हुआ हो परन्तु आज नहीं है, किसी समय के लिये पर्दा की प्रथा अच्छी होगी परन्तु आज नहीं हैं, किसी समय अमुक बात लाभकारकथी आज नहीं है तो इन सब बातों को मानने के लिए ये तैयार न होंगे। उत्तर न वे या तो चुप रह जांबवा किया सूझनेसे दिवायेंगे परन्तु स्थाद्वाद के अनुसार चलनेके लिये तैयार कभी न होंगे। ( अपूर्ण. ) मारवाड - मेवाड के लिए उपदेशक, श्री गिरजाशंकर ज. पंडितकी नियुक्ति हुई है । वे अल्प समय में ही उस तरफ प्रवासके लिए निकलेंगे । Bhaskaroday P. Press, Dhunji Street, Bombay Printed by Mansukhlal Hiralal at Jain and published by Harilal N. Mankar for Shri Jain Swetamber Conference at 20 Pythoni, Bombay 3.

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