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जैन युग.
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1443E%E0%AEENIENTी वीर संवत् २४५७. हिन्दी विभाग.
ता. १-१०-३१. सन्यास दीक्षा प्रतिबंधक निबंध. श्राविकाओंसे करानेके लिए तनतोड प्रयत्न करना चाहिए। * एक समीक्षा. ७
हमारी महासभाने बडोदरा राज्य दीक्षा प्रतिबंधक निबंधके समाजमें आज जो अशांति-छिन्न भिन्न दशा दशि लिए जो सूचनाए की हे उनका संपूर्ण समर्थन कर मत्र गोचर होती है उसका एक कारण दीक्षाकी दुकानदारी है !
जगहसे-संघ और मंडल आदिकी मिटींग कर उन मूचना
ओंको पुष्टि मिले इस प्रकार ठहराव पास कर पत्र द्वारा दीक्षाके दो चार पीठ-दीक्षा पीठांमे जो समाजको शरमिंदा करनेवाले कृत्य हो रहे हैं उनसे अब शायद ही कोई व्यक्ति
वडोदरा राज्यके न्यायमंत्री पर भेज देना चाहिए। अशत होगी ! इस दशाकी रोकनेके लिए थोडे वर्षोंसे युवक
महासभा-कॉन्फरन्सकी सूचनाए संक्षेपमे यह हैं। आगेवान नेता आगाही कर रहे हैं। जुन्नर कॉन्फरन्सके
कायदेका नाम “सगीर संन्यास दीक्षा प्रतिबंधक
निबंध" रखना. अधिवेशनने इस प्रश्नकी महत्वता स्वीकारकर एक टहराव
२ सगीरना बालिककी उम्मर वडोदराके कायदेमें ठहराई पास किया था जिसमें संबन्धी और संघकी सम्मतिके उपरांत
हुइ रखना. सगीर सूचना ५ अनुसार दीक्षा ले सकेगा. योग्य जाहेरातका प्रतिबन्ध रखा था। यह ठहराव कितना
अगर कायदेका कोइ अनादर करे तो शिक्षा होना आवस्यक और दीर्घ दर्शीथा यह अब समाज समझ सका है।
आवश्यक है. शिक्षा-बडोदरा राज्यने सूचितकी है वडोदरा राज्यमें संन्यास दीक्षा प्रतिबंधक निबंध-प्रकाशित
उससे कम करना. किया है और इस प्रकार करनेसे दीक्षा-अयोग्य दीक्षापर
वडोदरा राज्यका वतनी बहार सगीरको दीक्षा दिला प्रतिबंध रख समाजमें शांति फेलानेका एक स्तुत्य कार्य
तो उसे शिक्षा होना चाहिए. किया है।
जो किसीभी सगीरको वो जहाँका बतनी हो वहांके वडोदरा राज्यको यह करनेका मौका क्यों प्राप्त हुआ ? श्री श्रावक संध या जहां दीक्षा लेना हो वहांका श्री संघ नाबालिग सगीरकी मिल्कतकी गेर व्यवस्था नहीं हो और
तथा उसके माता-पिता-श्री आदि संबन्धीओंकी ऐसी अयोग्य दीक्षासे जो अनेक अनर्थ होते हैं वे बंध हो
सम्मति प्राप्त हो और दीक्षाकी योग्य जाहेरात हो इस हेतुसे कायदा करनेकी अरूरत पड़ी हो ऐसा मालूम
तो डिस्ट्रिक्ट मेजीस्ट्रेट के पास इन बातोंकी खात्री होता है। यदि समाजके नेता अपने घर बैठे इन झगडोका
कराकर प्रमाणपत्र प्राप्त करे तो वह दीक्षा गुन्हेंमे निकाल कर लेते तो आज राज्यको ऐसे विषयोंमे हस्तक्षेन । शामिल नहीं होगी। करनेकी आवश्यक्ता नहीं थी। परन्तु यह नहीं बना । अपने उपरोक्त सूचनाए वर्तमान परिस्थितिको देखते अत्यंत लडकेको चुराकर-भगाकर कोई लेजाता तब राज्यका शरण आवश्यक हैं । सूचना नंबर ५ से किसीभी प्रकारका आवलेनेका सूझता परन्तु अन्य किसी व्यक्तिके यहां यदि ऐसा श्यक्ता से अधिक प्रतिबन्ध दीक्षा लेनेवाले पर सगीर नहीं है यह बनाव बने तो सब चुप किदी लगा रखते। गुजरात-काठि- स्पष्ट ही है । सगीरकोभी दीक्षाके लिए अमुक शौके पालन यावाड-मालवा-मेवाडमें दीक्षाए. दिलानेके लिए अनर्थ हुए हैं करनेपर बंधनसे रहित रखा है। इसमें चुराना-भगाना नहीं उन सबकाही आज यह परिणाम नहिं है क्या। यदि आजभी हो सके यही मुख्य आशय प्रतीत होता है। हम इस प्रकारके नियमको स्वीकार न करेंगे तो समाजकी नाव जैन समाज और आगेवान और युवकगण कॉन्फरन्स न मालुम कहां झोला खाये करेगी-समझ नहीं आता। महादेवीकी मुचनाओंको समझकर उनका समर्थन करे और
इस प्रकारकी परिस्थितिमें हमारा क्या कर्तव्य है। दीक्षाके आदर्श जीवनको सुंदर और निर्मल बनाकर समाज हम सच्चे जैन धर्मके और समाजके सेवक हैं तो हमें दीक्षा सेवा करनेमे पीछे नहीं हठे यही प्रार्थना ! विषयक नियम बनाकर उसका स्वीकार साधु-साध्वी-श्रावक
मालवा निवासो. Printed by Mansukhlal Hiralal at Jain Bhasknroday P. Press, Dhunji Street, Bombay and published by Harilal N. Mankar for Shri Jain Swetamber Conference at 20 Pydhoni, Bombay 3.