Book Title: Jain Yug 1931
Author(s): Harilal N Mankad
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 112
________________ प्र जैन युग. वीर संवत् २४५७. हिन्दी विभाग. ता. १५-८-३१. ® जैन और हिन्दु जाति. ७ कहा जाता तैसे ही धर्म में मतभेद के कारण किसी आर्य को अनार्य नहीं कहा जा सकता। - हमारा भारतवर्ष एक प्राचीन और विशाल देश है जो हिन्दू शब्द समष्टि रूप से एक विशाल जाति का कि आरम्भ से ही तर्क बितर्क दृष्टि में विख्यात है। बहुत बोधक हैं जो पुनर जन्म, परलोक और परमात्मा को मानें। प्राचीन समय से जैन, बौद्ध और वैदिक धर्म भारतवर्ष में प्रच- बौद बैटिकी तीनों ही लित हैं। धार्मिक विचारों में कुछ मतभेद होते हुए भी एक अनसार पनर जन्म, परलोक और परमात्मा को मानते है जैसे ही जाति ( Race ) से सम्बन्ध रखते हैं। भारतवर्ष को शरीर के अंग भिन्न २ होते हुए भी समष्टि रूप से शरीर आर्यावर्त भी कहते हैं। इस लिये इस देश के वासियों को कहलाता है इस तरह जैन बौध और वैदिक धर्मी अन्तर भारतीय या आर्य कहा जाता हैं। तीनों ही धमों के शास्त्रों रखते हुए भी समष्टि रूप से हिन्दु ही हैं। Webster में आज्ञा है कि युक्तियुक्त बात को स्वीकार करो। इसलिये Dictionary में भी हिन्दु शब्द का अर्थ हिन्दोस्तान प्रत्येक भारतीय को अपने मानसिक भावों के प्रचार का पूर्ण के प्राचीन वासियों से है। नसल के तौर पर वह लोग अधिकार है इसी कारण साम्प्रदायिक झगडे भी होते रहे, जो आर्यन और विडियन कौम से सम्बन्ध रखते है ऐतिहासिक दृष्टि से भी जाहर है कि मतभेद के कारण छ: हिन्द कहलाते हैं। केवल संकुचित दृष्टि से ही यहाँ हिन्दु दर्शन (शास्त्र) रचे गये। समय के प्रभाव से राग-द्वेष के शब्द का अर्थ धार्मिक विचारों से लिया जाता है वहाँ कारण साम्प्रदायिक झगड़े बढ़ते गए और आर्य जाति ने हिन्दु का अर्थ वैदिक धर्म ही किया जाता है। जोड़ की फिलासफी को त्यज कर तोड की फिलासफी का हिन्दु जाति में जैनी सम्मिलित है या नहीं यह प्रश्न प्रचार किया । जिस प्रकार एक बीज से उत्पन्न हुवा विशाल समय २ पर उठता रहा है। जैन धर्म और वैदिक धर्म के वृक्ष भिन्न २ तनों में विभक्त होकर भी एक ही वृक्ष कहलाता विद्वानों ने धार्मिक सामाजिक राजनैतिक विचार से इस प्रश्न है इसी तरह एक ही आर्य जाति से सम्बन्ध रखने वाले भिन्न २ पर अपने २ भाव प्रकट किये हैं। बहुत वाद विवाद के धर्मों के अनुयायी होते हुए भी आर्य कहलाने के अधिकारी है। प्रश्चात् हिन्दु महा सभा ने हिन्दु शब्द का अर्थ इस प्रकार - आज कल आर्यों का दूसरा नाम हिन्दु और आर्यावर्त स्वीकार किया हैं हिन्दु से मुराद वह जन है जो किसी ऐसे का हिन्दोस्तान प्रचलित हो रहा है। हिन्दु शब्द ईरानी भाषा धर्म का अनुयायी हो जो धर्म भारतवर्ष में उत्पन्न हुवा हो। का है जा कि सिन्धूशब्द से अपभ्रंश होकर हिन्दु शब्द बन गया इस में सनातनी, आर्य सभाजी, जैन, सिक्ख ब्रह्म आदि है । सिन्धू नदि के उस पार रहने वाले अर्थात आर्यावर्त सम्मिलित हैं। महा मना पंडित मदन मोहन मालविया जी में रहने वाले हिन्दु कहलाए । आहिस्ता २ आर्य जाती जिस जैसे प्रसिद्ध व्यक्तियों का जोरदार अभिप्राय है कि जैन बौद्ध में जैन, बौद्ध वैदिक धर्मी सम्मिलित हैं हिन्दु कहलाने लगे। और वैदिक धर्मों एक ही जाति की शाखाऐ है। पन्जाब समय के प्रभाव से जैन बौद्धों की संख्या भारतवर्ष में बहुत प्रान्त में कही २ जैनो और वैदिक धर्मियों का परस्पर रोटी कम होगई । हिन्दु जाति में प्रायःवैदिक धर्मी ही रह गए। वेटी का सम्बन्ध भी देखा जाता हैं। रहन सहन तो विशेयही कारण है कि आम जो भारतीय इतिहास से अपरिचित षतया एक जैसा ही हैं। जहाँ २ हिन्दु सभाए स्थापित हैं है वैदिक धमियों को ही हिन्दु मानने लगी। रूढियों को बहाँ २ जनी आर्य समाजी सनातन धर्मों सभी मिल कर भी धर्म समझने बाले मुर्ख लोगों ने यहाँ तक तंगदिली दिखाई बडी २ जिम्मेदारी काम कर रहे हैं। इसी पत्र में किसी कि आर्य समाज ब्रह्म समाज वैदिक धर्म के अनुयायियों दूसरे स्थान पर पाठक श्री जैन सम्मति मोबासा के मानद को भी हिन्दु जाति से खाज कर दिया। जैसे पौराणकों में मन्त्री आर. एम. शाह का श्वेताम्बर जैन कानकेंस बम्बई के शैव, वैष्णव और शाक्तिक सम्प्रदायों को भी अपौराणक नहीं (अनुसंधान पृष्ट १२७ उपर) Printed by Mansukhlal Hiralal at Jain Bhaskaroday P. Press, Dhunji Street, Bombay and published by Harilal N. Mankar for Shri Jain Swetamber Conference at 20 Pydhoni, Bombay 3.

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