Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha Author(s): Labdhisuri Publisher: Jain Sangh Madras View full book textPage 8
________________ श्री जैन व्रत विधि. प्रवन्याविधि. वणि, नंदिकडावणि, वास निक्षेप करो, एम शिष्य ज्यारे कहे त्यारे गुरु माथे वासक्षेप नवकार त्रण गणवापूर्वक नाखे. पछी खमासमण दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं सम्यक्त्वसामायिक, श्रुतसामायिक, सर्वविरतिसामायिक पारोपावणि नंदिकट्टावणिश्र, देव वंदावो, एम शिष्य कहे त्यारे गुरु कहे-चंदावेमि. शिष्य कहे इच्छं. गुरु शिष्यने पोताना डाचे पडखे राखीने संघ समक्ष देव वंदावे. खमा० दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूं ? इच्छं कही पार्श्वनाथर्नु अगर शांतिनाथर्नु चैत्यवंदन करे. ॥ अथ चैत्यवंदन ॥ 兩米%杀%杀%术%朵法朵%杀%术%宗法器法术。 找关关长光公共关-光长长长发卷发染光是光器一 ॐ नमः पार्श्वनाथाय विश्वचिंतामणीयते । ही धरणेंद्र वैरोट्या पद्मादेवीयुतायते ॥१॥ शांतितुष्टिमहापुष्टिधृतिकीर्तिविधायिने । ॐ ह्री द्विव्यालवैतालसर्वाधिव्याधिनाशिने ॥ २ ॥ जया जिताख्या विजयाख्या पराजितयान्वितः। दिशां पालैहेर्यक्षैविद्यादेवीभिरन्वितः ॥३॥ ॐ असिआउसाय नमस्तत्र त्रैलोक्यनाथताम् !। चतुष्षष्टिसुरेन्द्रास्ते भासन्ते छत्रचामरैः ॥ ४॥ श्रीशंखेश्वरमंडन : पार्श्वजिनप्रणतकल्पतरुकल्प!। चूरय दुष्टवातं पूरय मे वांछितं नाथ!॥ ५॥ ॥ १ ॥Page Navigation
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