Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Jain Sangh Madras

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Page 18
________________ श्री जैन व्रत विधि. ॥ ६ ॥ *K-JH-KHHHHH-KYKYKYKHK* शाखा, चांद्रकुल, प्राचार्य कहेतुं तमारा गुरुनुं नाम उपाध्याय तमारुं नाम " वासक्षेप नांखे पछी सज्झाय करी उपयोग करवा काउस्सग्ग करी खमा० दइ पच्चक्खाण करे. पछी नवदीक्षित, गुरु तथा सर्व साधुने वांदे पछी साध्वी श्रावक श्राविका नवदीक्षितने वांदे पछी खमा० दर इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी हितशिक्षाप्रसाद करोजी एम शिष्य कहे त्यारे गुरु देशना थापे पछी वाजतेगाजते सकळ संघ साथे दहेरासर जबुं. पछी उपाश्रये यावी इशान खूखा तरफ मों राखी एक बाधापारानी नवकारवाळी नवीन दीचित पासे गणाववी. ॥ इति प्रव्रज्या विधि ॥ प्रवर्तिनी " एप्रमाणे त्रण वखत कद्देवु. पछी गुरु १ स्त्री दीक्षा लेनार होय तो प्रवर्तिनी नाम देवु. एम KYKYKYKKKK***** प्रव्रज्या विधि ॥६॥

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