Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Jain Sangh Madras
View full book text
________________
+HK HK HHHH-KK 36 HK-JEK HEK
निंदामि गारहामि अप्पाणं वोसिरामि.
षष्ठ सप्तम अष्टम व्रत आलावो.
अन्नं भंते! तुम्हाणं समीचे गुणव्वय तिए उड्डअहोतिरियलो अगम शवितयं दिसिपरिमाणं पडिवज्जामि उवभोगपरिभोगवए भोयणओ, अणंत काय - बहुबी - राई भोयणाई परिहरामि . कम्मश्रणं पन्नरसम्मादाणाई इंगालकम्माइ आइयं बहुसावज्झाई खरकम्माई रायनियोगं च परिहरामि, अन्नत्थदण्डे अवज्झाणइयं चउव्विहं अन्नत्थदण्डं परिहरामि जावजीवाए अहागाहियभंगएणं तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पा वोसिरामि.
नवमं दशम एकादश द्वादश व्रत आलावो.
अन्नं भंते! तुम्हाणं समीवे सामाइयं देसावगासियं पोसहोववासं प्रतिहिसंविभागवयं च जहा सत्तिए पडिवज्जामि जावज्जीवाए श्रहागहियभंगेणं तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पा वोसिरामि.
************

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96